ऐ ज़िन्दगी ,अब मैं तुझे थोड़ा समझने लगी हूँ


एक वक़्त था जब खुद को ढूंढ रही थी,
मौका तलाश रही थी खुद को तराशने का,
मैं क्या हूँ ,मैं कौन हूँ और क्यूँ हूँ? ,
बस आज जब खुद को जानने लगी हूँ ,
अब लगता है खुद को इतना क्यूँ समझने लगी हूँ

पहले दुःख मे रोती थी और सुख मे हंसती थी,
आज ना दुःख में दुःखी और सुख मे सुखी होती हूँ,
क्यूंकि समझ लिया है की इनके दोगले चेहरे है, कभी आते है कभी बिन बोले चले जाते है ,
अब इनका हाथ तो थाम लिया है पर इनकी तरफ देखने का मन नहीं करता ,
लगता है ऐ ज़िन्दगी अब तुझे थोड़ा समझने लगी हूँ

लोग आएगें दो बाते प्यार की बोलकर चले जायेगें ,
जानती हूँ मैं ,
मैं फिर भी उनसे मोहब्बत बेशुमार करुँगी,
क्यूंकि ज़िन्दगी बहुत छोटी है ये जान चुकी हूँ ,
लगता है ऐ ज़िन्दगी अब तुझे थोड़ा समझने लगी हूँ

बीती बाते आज भी याद आती है,
कितनी भी कोशिश कर लू ज़ेहन से नहीं निकाल पाती,
कोई नहीं आएगा इस बक्से को बंद करने,
ये खुद की जंग है खुद को ही लड़नी पड़ेगी ,
इतना जान चुकी हूँ मैं ,
लगता है ऐ ज़िन्दगी अब तुझे थोड़ा समझने लगी हूँ

कोई नहीं याद करेगा तुझे मरने के बाद,
शमशान मे जलाने के बाद ,कुछ दिनों में दिल से भी जला देगें,
तो क्यूँ उन लोगो का सोचना ,जो मन करता है वो कर ,
लोगो को इतना जानने लगी हूँ ,
लगता है ऐ ज़िन्दगी अब तुझे थोड़ा समझने लगी हूँ

जितना हो पायेगा उतना प्यार करुँगी,
किसी का दिल ना टूटे ये कोशिश करुँगी,
बस एक छोटी सी ख्वाहिश थी ,की जैसा मैं खुद को जानती हूँ वैसा कोई मुझे भी जाने,
पर तकदीर सबको ऐसा इंसान नहीं देती ये जान चुकी हूँ ,
लगता है ऐ ज़िन्दगी अब तुझे थोड़ा समझने लगी हूँ

पैसे और बाहरी चकाचौंध में आज हर इंसान अंधा हो गया है ,
भूल गया है की आज भी असली ज़िन्दगी प्यार से ही देखी जाती है,
और अब अच्छा लगता है ये जान के की अच्छा ही हुआ ,
ऐ ज़िन्दगी अब मैं तुझे थोड़ा समझने लगी हूँ

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